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तेरे जाने पे मेरे दिल को यह अहसास हुआ,
तू मेरी रूह में था इस कदर समाया हुआ।
तेरे आने कि यूँ तो कभी दस्तक न हुई,
तेरे जाने के अहसास से है घबराया हुआ।
अपनी हसरत के जिन पंखों को पसारा मैंने,
बेवजह तन्हाई में वक्त गुज़ारा मैंने।
तू वहीँ था मेरे सपनों को सहेजे दिल में,
इकतरफा मोहब्बत को क्या खूब निभाया तूने।।
तू है तो मेरी रूह को आवाज़ तो दे,
तू है तो मेरे सपनों को परवाज़ तो दे,
वैसे आदत है हमें जीने की तन्हाई में,
तू है तो अपने होने का अहसास तो दे।
यूँ तो देखा है तुझे साँझ की परछाई में,
तेरी आहाट भी सुनी रात की गहराई में,
तेरे होने का यकीं दिल ये करना चाहता है,
मेरे ख्वाबों को ज़रा भर सा विश्वास तो दे।
वो कौन सा दरवाज़ा है जिसे दस्तक का है इंतज़ार,
हमने तो झरोखों को भी बतियाते हुए देखा है।
कागज़ की कश्ती से किनारे की क्या उम्मीद करें,
तूफानों में हमे साहिल को डूब जाते हुए देखा है।
गुज़रे लम्हों के आगोश से कुछ हर्फ़ चुराकर हमने,
फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का संजोया है।
तेरे अहसास की तज़बीह के मनकों से अबतक,
अपनी हर नज़्म को पिरोया है।
यूँ तो चेहरे पे कायम रहती है रौनक़
ज़िक्र जबतक तेरे नाम का महफ़िल में न हो,
तू नज़र आये तो गुम हो जाते हैं अलफ़ाज़ मेरे,
मेरे दीदार की ख्वाहिश जो तेरे दिल में न हो।
यूँ बेरुखी मेरे वजूद से क्या मज़बूरी है तेरी भी,
तू ऐसा तो नहीं था, खुदा गवाह है इश्क का अपने,
जाने-अनजाने ही सही रास्ते जुदा हुए भी तो क्या,
मोहब्बत का हर फ़र्ज़ फिर भी निभाया हमने।।
टूटा दिल है, शीशा तो नहीं कि जुड़ न पायेगा,
वक़्त की मरहम लगी तो मौसम ये बदल जायेगा,
माना पतझर है अभी, हर तरफ वीरानी है,
बस ज़रा सब्र से चल, मौसमे- बहार आएगा।
क्यों मेरा अक्स तेरे शख्स का मोहताज़ रहे,
क्यों मेरे ख्वाबों पे भी तेरा इख़्तियार रहे,
अपने वजूद को मैं कितना दरकिनार करूँ,
इबादत न समझ, तू चाहत है मेरी, याद रहे।
खुद को रुस्वा किया तो नज़रें मिलायूँ कैसे,
तेरे ऐहतराम में ताउम्र बिताऊँ कैसे,
तूने मुझको मेरी हस्ती से ही महरूम किआ,
फ़ना खुद को कर, इंतख़ाब तेरा करुँ कैसे।
तेरे जाने के एहसास से दिल सिहरता तो है,
वक़्ती हालात है वक़्त गुज़रता भी तो है,
तू रहा और भर तो मैं खुद में बाकी न रहूँगा,
हो जो खुद पे यक़ीं, मुस्तकबिल संवारता भी तो है।
तू सुबह है, तू हवॉ है, तू वफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है,
तेरे होने का अहसास, मेरे जीने की वजह,
तुझे छू लूँ, तू मेरे मर्ज़ की शफा सा है।
क्यूँ मिला तू मुझे वक़्त के उस मोड़ पर,
जहाँ रस्ता तो है मंज़िल का इंतज़ार नहीं,
तेरी कशिश तो है दिल को मगर अहसास भी है
तेरी ख़ामोशी तेरे प्यार का इकरार नहीं,
तेरी आँखों की गहराई में जो फ़लसफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है।
क्यूँ तेरी आँखों में अक्स किसी और का दिखे
तेरी बातों में भी आहट है किसी बेगाने की,
मैं तेरी ज़ात में भी शामिल हूँ या न हूँ, तू न बता
हसरत तो है, जु्र्रत नहीं, जताने की,
है यक़ीं, तू न फ़रेबी न बेवफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है।
तू सुबह है, तू हवॉ है, तू वफ़ा सा है,
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