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मुट्ठी भर यादें, चंद तन्हाई के लम्हे, और कुछ ज़ख़्म दिल के
ज़िंदगी का सफ़र काफ़ी बॉदस्तूर रहा
वैसे तो क़िस्से बहुत हैं सुनाने को महफ़िल में
बस तेरी आबरू की ख़ातिर मैं मजबूर रहा।
तू जो पास आके भी बैठा मगर ग़ैरों की तरह
तेरी आहों में मेरे नाम की गर्मी ही न थी
बस, आदत हूँ तेरी, चाहत न बनी अब तक
तू रिवायत ये निभा कर ही मग़रूर रहा।
यूँ न रह बेपरवाह मेरे दिल के ख़ालीपन से
ज़िंदगी का दस्तूर है भरना हर शिकन
ऐसा न हो जब तुझे अहसास हो मेरे खो जाने का
फ़ासला सदियों का भरना साँसों को नामंज़ूर रहा।
अधूरी सी मिली ज़िंदगी टुकड़ों में कुछ बँटी सी
तूने भी तो जोड़ने की कभी की नहीं ज़हमत
हम भी बिखरे रहे राह के पत्थरों की तरह
सबकी ठोकर भी सह लेते जो मिलती तेरी रहमत।
तुझे ही आफ़ताब समझकर अपने जीवन का
तेरे ही गिर्द हम भटकते रहे, ताउम्र
तेरी इक चाहत भरी नज़र के इंतज़ार में
हम भी चुपचाप जलते रहे बनकर तेरी अस्मत।
क्या यही हश्र है हर रिश्ते में वीरानी का
या है महरूम तू मोहब्बत की कैफ़ियत से अब तक
थोड़ी तो नर्मी दिखा दिल की रिवायतों के लिए
कौन जाने बदल जाए तेरी तबियत, मेरी क़िस्मत।
कुछ तो मौसम का तक़ाज़ा है, कुछ अल्फ़ाज़ तेरे,
फ़िज़ा में नमी बढ़ने यूँ लगी है यक़दम।
मेरे अश्कों के बाइज़्ज़त फ़ना होने ख़ातिर
कुदरत ने भी अब्र बरसा दिया है बेमौसम।।
आते-जाते हैं तेरी महफ़िल में ग़ैर कई
तेरी मजलिस में यूँ तो शिरकत करने को
तेरी ज़ात की वीरानियों से बेपरवाह हैं वो
मैं ही हूँ जो तेरे राहों के काँटों पे है हमकदम
कभी तो मेरे इश्क़ की भी आबरू तू रख
कभी तो मेरी ख्वाहिशों का रख तू सबब
मैं तेरी हस्ती का वो हिस्सा हूँ, बेमतलब ही सही
चाहे अनचाहे, मुकम्मल तो तुझे मुझसे होना है हरदम।
सीने का दर्द हरदम ग़म से नहीं होता है
कुछ मर्ज़ ज़िंदगी में अहसास से हैं वावस्ता।
कुछ को भूलने की जद्दोजहद भी की थी हमने
कुछ ख़ुशनुमा सी यादें, जिनसे है दिल का रिश्ता ।।
आसान सा लगता है कहना कि भूल जाओ
वो वक़या माज़ी का जिसमें बसीं थीं साँसें
ढक दिया था कभी जिसको, वक्त की चादर से
लो फ़िर है सर उठाया उस दबी सी कशिश ने।
ये जानते हुए भी, मुमकिन नहीं है मिलना
चाहत पे आज अपनी कुछ बस नहीं हमारा,
फ़िर से आज तय है, इस दिल का टूट जाना
फ़िर आस के करीचों का दिल को निशाँ बनाना।
शिकवा करें क्या तुमसे, आए यहाँ क्यों तुम फ़िर
जाने कहाँ दिया था, यादों ने कभी तुमको
चाहा था कभी तुमने हमको भी शिद्दत से
ये अहसास ही काफ़ी है, जीने की वजाहत को।
तल्ख़ सचाई है नाकाम मुहब्बत की ज़ालिम
डूबेगा दलदल में, यूँ तबियत से एह्तेजाज़ ना कर
तू नज़र से दूर था तो अर्श पे बिठा लिया तुझको
बैठा पहलू में तो ऐ दिल, यूँ लाजवाब ना कर।
तेरे होने का अहसास तेरे होने से बेहतर क्यों है
सीने में उठती जो कसक बस पलभर ही क्यों है
तू वो ख़्वाब है, जिसकी ताबीर गवारा ही नहीं
मेरे तसव्वुर की परछाई ही रह, इंतख़ाब ना कर
तू वो वक्त है जो बिताता हूँ मैं ख़ुद के साथ
बीते रिश्तों की दफ़न कब्र की जानिब जा कर
कभी रो कर, कभी लम्बी आहें भरकर
बस यही जुस्तजू, सारे आम यूँ बेनक़ाब ना कर।
एहसास का सफ़र यूँ बदगुमान सा रहा
ये जानते हुए, तू नहीं है, क्यों हैरान सा रहा।
तुझसे दूर होना, ये मर्ज़ी थी मेरी भी, तेरी भी
फिर भी ना जाने क्यों ये दिल परेशान सा रहा।
हालात की क़लम जब हाथों में थी हमारे
तो स्याही को कालिख समझ किनारा कर लिया था
वक्त ने जो फ़साना लिख दिया मेरे हक़ में, तेरे हक़ में
क़बूल कर के भी उसे क्यों पशेमान सा रहा।
हसरतों का सफ़र क्यों अधूरा सा नज़र आता है बिन तेरे
ऐसा नहीं कि ख़ुशी नहीं है ज़िंदगी में मेरी, फिर भी
तू तसव्वुर था मेरा, क्या मैं भी ख्वाहिश हूँ तेरी
इस इल्म से ताउम्र ये दिल अनजान सा रहा।।
तुझसे दूर होना, ये मर्ज़ी थी मेरी भी, तेरी भी
फिर भी ना जाने क्यों ये दिल परेशान सा रहा।
जिस घर को बनाने के लिये खपते रहे सारी उमर,
उसमें रहने का मौका मिला तो लगा कैद हो गये।
जिस आज़ादी की परवाह भी न की थी कभी हमने,
उसके छिन जाने पे क्यों लगा कि बर्बाद हो गये।।
उन फिज़ाऒं के बारे में क्या सोचा है कभी यूँ ,
जिनके दामन में ज़हर सींचते रहे बरस दर बरस,
आज जी चाहता है सीने में भरलें थोड़ी सी ताज़ी हवा,
किसने जाना था कि इक सांस के लिये भी जाएँगे तरस।।
जाने ये ही है कहर जो बरपा है आज दुनिया पे
या ये है दवा उस ज़हर की जो फैलाया था खुद हमने,
आज कुदरत को जो अंगड़ाई लेते हुए देखा तो लगा,
जाने अंजाने में इस आफ़त को खुद ही बुलाया हमने।
अब जो समझ गया है तो भूलने पे मजबूर न हो, ऎ इंसाँ,
तेरे जीने के लिये मौत का ताँङव रचा रब ने।
जो रुक गया, जो झुक गया, बचेगा वही आज,
बहुत कुछ खोके ये अहसास कमाया है हमने।
अब जो निकले इस मुसीबत से तो सही राह तुम चुनना,
फिर से न देना कुदरत को ये मौका देने का यू़ँ सज़ा,
थोड़ी-थोड़ी सी कोशिश जो करें हम अपने गिर्द भी,
हर आदमी को बनना पड़ेगा इस बदलाव कि वजह।।
काग़ज़ के फूलों से घर को सजाने का हुनर
शायद होने लगा है कुछ तो बेअसर
आँगन में महकते गुलाब को चखकर ये लगा,
क्या यही था जो ढूँढते फिरते थे शहर भर
कुछ काग़ज़ के टुकड़ों के फेर में पड़कर,
ना रहा ये, और वो जो मिले काफ़ी न हुए ।
आज थमने पे जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ ,
ज़िंदगी गुजरती गई, हम वहीं खड़े रह गए ।
जाने किस छोर की तलाश में भटकते रहे,
भूलकर ये कि ये दुनिया तो सिफ़र है,
उन मंज़िलों की चाह में जो किसी की न हुई,
हम रस्तों को दोष देते रहे जिन पे थे कदम ये टिके ।
आज थमने पे जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ
हम न ज़मीं पर रहे न आसमाँ पाया मुकम्मिल
ज़िंदगी सरकती रही, हम वहीं खड़े रह गए ।
अपनी ख़्वाहिशों को ज़रूरत का जामा पहनाकर,
अपनी कश्ती को लहरों के हवाले यूँ किया,
हर ठोकर, हर नाकामी, हर ग़लती को अपनी,
बस मुक़द्दर का नाम देके मंज़ूर किया
आज थमने पे जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ
थामते पतवार तो रुख़ कर लेते तबाही से परे
ज़िंदगी बहती रही. हम वहीं खड़े रह गए ।
तू है तो मेरी कोख़ से ही जन्मा, ए बंदे
आज कुदरत ने खुद सामने से साबित ये किया,
तेरी हर गफ़लत को नादानी समझकर तेरी
एक माँ बनके उसे नज़रंदाज़ किया ।
पर तू तो मुझको ही मिटाने पे तुला है अब तो
बिना ये सोचे, बचेगा तू भी नहीं, जो मैं न रही ।
रुक जा पलभर के लिए, सोच क्या यही चाहता है तू
सब यहीं होगा बस तू ही न रहेगा आख़िर में ।
आज थमने को जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ
ज़िंदगी पिघलती रही, हम बेवजह जलते रहे ।
ज़िंदगी पिघली रही , हम बेवजह जलते रहे
अपनी रफ़्तार की उन गर्म साँसों की तपिश से
ज़रा थम के अभी बारिश को जो महसूस किया
कुछ तो सुकून मिला है उस तीखी सी ख़लिश से
फ़लसफ़ा ज़िंदगी का अब तो समझ आने लगा है शायद
ज़िंदगी नाम है रास्तों का, मंज़िल तो है बेवफ़ा।
आजा जी ले इसे कभी चलकर, कभी रुक के
ये है नेमत, न मिलेगी जो ख़ाक हुए इक दफ़ा।
आज थमने को जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ
अभी ज़िंदा हैं हम ज़िंदगी बची है अभी।
अपने जीने के बस ढंग बदलकर देखें
पूरी कायनात तेरी मुंतज़िर है अब भी।
आज थमने को जो मजबूर हुए तो ये अहसास हुआ
अभी ज़िंदा हैं हम, बची है ज़िंदगी अभी भी ।
टूट के चाहा जिसे, ग़म तो है खोने का उसे
जानते हैं कि बेवफ़ा तो वो भी ना था
पर टूटे टुकड़ों के नसीब में बिखरना ही तो है
पूरी शिद्दत से जो चाहते तो पा भी लेते उसे।
मेरे हुनर को न पहचानने से हो ना ग़मज़दा
ख़ाक में लिपटा हीरा भी पत्थर ही होता है,
क्या गिला करें के जमाने ने दरकिनार किया
हर नज़र जौहरी की हो, ऐसा भी कहाँ होता है।।
आइना देखा ग़ौर से बड़ी मुद्दत बाद
चंद झुर्रियों ने मेरी ज़िंदगी बयाँ कर दी
कयी अनकही सी बातें, कयी अधूरे से ख़्वाब
कुछ छूटे हुए रिश्ते, यही सरमाया है मेरा।
रात फ़िर से कटी करवटें लेते लेते
अँधेरे से झाँकती परछाई के साथ
इस इंतज़ार में के तुम अब आओगे, तब आओगे
ज़िंदगी गुज़ार दी हमने तन्हाई के साथ।
यूँ तो अहसासे ख़ुद्दारी भी था,
पर कुछ तो थी रिश्तों की विरासत
कश्मकश सीने में महसूस हुई तो,
थी मगर वक्त की नज़ाकत,
खून का घूँट पिया, फ़िर इक बार
आँखों से गिरी नमी को चखकर
हमने माथे की शिकन को ढका
वो हिजाब मान बैठे इसे।
प्यार अहसास है रिश्तों के उस बंधन का, सुना था कभी
जिसे जीकर कभी मरकर निभाते रहे बस ताउम्र
नाम दे दे के थक गए हर रिश्ते को कुछ न कुछ
बेनाम रह गया बस प्यार ही इनमें कहीं न कहीं।
स्याह रातों में ही क्यों रंगीं ख़्वाब जवाँ होते हैं
कच्ची उम्र में ही क्यों उम्मीदों के पंख परवाँ होते हैं
वक्त भी वक्त का मोहताज हो जाता है जवानी को लुटाने के बाद, और
रस्तों की बिसात पे बिखरे अधूरी हसरतों के निशाँ होते हैं।
पास आने की तलब भी है,
तुझसे मिलने का डर भी
ख़ुद का ख़ुद पे यक़ीं है भी
और सोचूँ तो नहीं भी
दिल की धड़कन है जो
तेज हो जाती है तेरे पहलू में
दूर हो पाना मिल के यूँ दोबारा
कौन जाने, ये मुमकिन है भी, कि नहीं भी।है।
दूर होना तेरा मेरे दिल से मुबारक हो तुझे
तूने भी दुनिया के दस्तूर ही तो निभाए हैं,
वक्त के साथ कम हो जाती है ज़रूरत बासी रिश्तों की, सुना था कहीं
भूल न जाना कि हर नयी चीज़ हमेशा नयी नहीं रहती।
बचपन की दहलीज़ को लाँघा था बड़े चाव से हमने
जवानी के सुने उन ख़ुशनुमा क़िस्सों की ललक में
यूँ फुर्र से उड़ गयी वो उम्र, ज़िंदगी की कश्मकश में
कुछ बेरंग बाल और कुछ चेहरे की लकीरें दे कर।
बंद दरवाज़ों को देख कर न हो जाना यूँ मायूस
हर दरवाज़ा खुलने की नीयत से तामीर होता है।
बस ज़रा अपने में वो क़ाबिलियत तो कर जमा
चरमरा के ही सही, दरवाज़ों की तक़दीर में खुलना है लिखा।
यूँ आसाँ तो नहीं कि माज़ी का तस्सवुर ना हो कभी
ज़िंदगी का मक़सद चाहे रफ़्तार ही से क्यों न हो वावस्ता
कभी तो मुड़के देखना लाज़िमी है, जो छूट गया चाहे-अनचाहे
ज़िंदगी का वो मंजर भी मेरे दिल के तारों से जुड़ा है कहीं न कहीं।
चंद घढ़ियाँ तो ज़रूरी हैं हर रोज़
ख़ुद की ख़ुद से मुलाक़ात के लिए
दुनिया को पहचानने की कोशिशों में
अपने आप को भूलने लगें हैं हम।
इक भँवर है जज़्बातों की लहरों से बना हुआ
और हर तरंग का कुछ अलग ही है मिज़ाज
कुछ रिश्तों के सतरंगी धागे, कुछ ख़्वाबों के इंद्रधनुष, कुछ यादों का कारवाँ
सब कुछ मिलाकर मेरा दिल बना है।
माँगी थी ख़ुदा से मेरे पुरसुकूँ सी फ़ुरसत,
कातिल ने तो ख़ंजर ही यूँ आर-पार कर दिया।
पलभर की खामोशी की दरक़िनार में ऐ ज़ालिम।
तूने तो मेरी रूह को तार तार कर दिया।
कहाँ ग़लत थे जो कहते थे. ख़ाली हाथ है जाना
तूने तो मेरे दमन को भी शर्मसार कर दिया।
शिकवा भी करें तों किससे करें, ऐ दिल तू ही बता दे,
मेरे आशिक़ ने ही मौत को मेरा यार कर दिया।
कतरा- कतरा हम मिटते रहे
ज़िन्दगी के सफ़र में
बिना ये जाने कि उनकी शह में
ही dissolve हो गये
उन्हें शिकायत है फिर भी, हम पहले से
न रहे अब
हम इसी गुमान में कि हम
तो evolve हो गये ।।
तू सुबह है, तू हवॉ है, तू वफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है,
तेरे होने का अहसास, मेरे जीने की वजह,
तुझे छू लूँ, तू मेरे मर्ज़ की शफा सा है।
क्यूँ मिला तू मुझे वक़्त के उस मोड़ पर,
जहाँ रस्ता तो है मंज़िल का इंतज़ार नहीं,
तेरी कशिश तो है दिल को मगर अहसास भी है
तेरी ख़ामोशी तेरे प्यार का इकरार नहीं,
तेरी आँखों की गहराई में जो फ़लसफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है।
क्यूँ तेरी आँखों में अक्स किसी और का दिखे
तेरी बातों में भी आहट है किसी बेगाने की,
मैं तेरी ज़ात में भी शामिल हूँ या न हूँ, तू न बता
हसरत तो है, जु्र्रत नहीं, जताने की,
है यक़ीं, तू न फ़रेबी न बेवफ़ा सा है,
तू मेरा नहीं इस बात से दिल ख़फ़ा सा है।
तू सुबह है, तू हवॉ है, तू वफ़ा सा है,
गुज़रे लम्हों के आगोश से कुछ हर्फ़ चुराकर हमने,
फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का संजोया है।
तेरे अहसास की तज़बीह के मनकों से अबतक,
अपनी हर नज़्म को पिरोया है।
यूँ तो चेहरे पे कायम रहती है रौनक़
ज़िक्र जबतक तेरे नाम का महफ़िल में न हो,
तू नज़र आये तो गुम हो जाते हैं अलफ़ाज़ मेरे,
मेरे दीदार की ख्वाहिश जो तेरे दिल में न हो।
यूँ बेरुखी मेरे वजूद से क्या मज़बूरी है तेरी भी,
तू ऐसा तो नहीं था, खुदा गवाह है इश्क का अपने,
जाने-अनजाने ही सही रास्ते जुदा हुए भी तो क्या,
मोहब्बत का हर फ़र्ज़ फिर भी निभाया हमने।।
चंद क़िस्से क्या सुनाए तेरी वफ़ा के दुनिया को
तूने ख़ुद को मेरा मेहरम तय कर लिया
क्यों भूल जाता है ज़ालिम वो बेरूखी के नश्तर
जिन्हें तन्हाई में सहकर भी मैं ख़ामोश रहा।
ये तो ख़ुद्दारी है मेरी जिसने रोका मुझको
वरना ज़माने की तो कभी मैंने परवाह न की
तुझे चाहता न होता जो इंतिहा की हद तक
यही वजह, तेरी मोहब्बत में मदहोश रहा।
टूटा दिल है, शीशा तो नहीं कि जुड़ न पायेगा,
वक़्त की मरहम लगी तो मौसम ये बदल जायेगा,
माना पतझर है अभी, हर तरफ वीरानी है,
बस ज़रा सब्र से चल, मौसमे- बहार आएगा।
क्यों मेरा अक्स तेरे शख्स का मोहताज़ रहे,
क्यों मेरे ख्वाबों पे भी तेरा इख़्तियार रहे,
अपने वजूद को मैं कितना दरकिनार करूँ,
इबादत न समझ, तू चाहत है मेरी, याद रहे।
खुद को रुस्वा किया तो नज़रें मिलायूँ कैसे,
तेरे ऐहतराम में ताउम्र बिताऊँ कैसे,
तूने मुझको मेरी हस्ती से ही महरूम किआ,
फ़ना खुद को कर, इंतख़ाब तेरा करुँ कैसे।
तेरे जाने के एहसास से दिल सिहरता तो है,
वक़्ती हालात है वक़्त गुज़रता भी तो है,
तू रहा और भर तो मैं खुद में बाकी न रहूँगा,
हो जो खुद पे यक़ीं, मुस्तकबिल संवारता भी तो है।
गुज़रा है आज कोई दिल की गली से होकर,
धड़कनों से तरंगों की आवाज़ आई है,
ये हुआ क्या, ऐ दिल मुझको भी बता,
इन्हें तो सदीयों से चुप रहने की आदत सी हो आयी है।
क्या नहीं जानता तू अमानत है किसी की,
तुझे हक़ ही है कहाँ यूँ धड़कने का बेवजह
तुझसे वावस्ता है जो ज़िक्र तेरे अपनों का
ना भूल जाना कि इसमें, उनकी भी रुसवाई है।
कैसे रोकूँ ये हलचल जो साँसों में हुई है यक़दम,
जैसे महकी हो अरमानों की दबी सी चिंगारी
क्या गुनाह है कि कुछ पल ज़िंदगी के जी लूँ बिना मलाल किए
कल तो फिर राह वही, चाह वही और वही तन्हाई है।।
तेरे जाने पे मेरे दिल को यह अहसास हुआ,
तू मेरी रूह में था इस कदर समाया हुआ।
तेरे आने कि यूँ तो कभी दस्तक न हुई,
तेरे जाने के अहसास से है घबराया हुआ।
अपनी हसरत के जिन पंखों को पसारा मैंने,
बेवजह तन्हाई में वक्त गुज़ारा मैंने।
तू वहीँ था मेरे सपनों को सहेजे दिल में,
इकतरफा मोहब्बत को क्या खूब निभाया तूने।।
जीवन की हर सुबह सुहानी तुझी से है,
हर शाम में झलकती रूहानी तुझी से है,
वक़्त के पन्नों में जो सहेजी है बनके यादें
मेरे इश्क़ की वो अनकही कहानी तुझी से है ।।
ऐसा नहीं कि तू ही तू रहता है गिर्द मेरे,
ऐसा नहीं कि दिल पे तेरी ही दस्तक हुई हो
कई बनके निशाँ मिटे और कुछ बुझ गये लौ बनके
लेकिन मेरी मोहब्बत की हर निशानी तुझी से
है ।।
रस्ते थे कुछ तो मुश्किल, मंज़िलें भी धुँधली सीं,
थामा जो हाथ तेरा, बेचैनियाँ बहुत थीं
अब साथ जो चले तो लगता है कुछ तो सही था
ओ हमसफ़र, सफ़र में रवानी तुझी से है।
तू है तो मेरी रूह को आवाज़ तो दे,
तू है तो मेरे सपनों को परवाज़ तो दे,
वैसे आदत है हमें जीने की तन्हाई में,
तू है तो अपने होने का अहसास तो दे।
यूँ तो देखा है तुझे साँझ की परछाई में,
तेरी आहाट भी सुनी रात की गहराई में,
तेरे होने का यकीं दिल ये करना चाहता है,
मेरे ख्वाबों को ज़रा भर सा विश्वास तो दे।
वो कौन सा दरवाज़ा है जिसे दस्तक का है इंतज़ार,
हमने तो झरोखों को भी बतियाते हुए देखा है।
कागज़ की कश्ती से किनारे की क्या उम्मीद करें,
तूफानों में हमे साहिल को डूब जाते हुए देखा है।
ज़िंदा हैं हम के साँसें अभी तक नहीं रुकीं,
हैरां हैं कि इंतज़ार में आँखें नहीं थकीं,
दिल के धड़कने से हमें इल्म ये हुआ,
मेरे नसीब से तनहाइयाँ अब तक नहीं चुकीं ।
तेरे होने का नज़ारा तो है, एहसास नहीं,
तेरी मौजूदगी मेरे साथ है मेरे पास नहीं,
उन राहों पे क्या आवाज़ दें, तू था ही नहीं जहां,
मंज़िल तो मुक़द्दर है, बस आस नहीं है।।
माँगी थी ख़ुदा से मेरे पुरसुकूँ सी फ़ुरसत,
कातिल ने तो ख़ंजर ही यूँ आर-पार कर दिया।
पलभर की खामोशी की दरक़िनार में ऐ ज़ालिम।
तूने तो मेरी रूह को तार तार कर दिया।
कहाँ ग़लत थे जो कहते थे. ख़ाली हाथ है जाना
तूने तो मेरे दमन को भी शर्मसार कर दिया।
शिकवा भी करें तों किससे करें, ऐ दिल तू ही बता दे,
मेरे आशिक़ ने ही मौत को मेरा यार कर दिया।
कतरा- कतरा हम मिटते रहे
ज़िन्दगी के सफ़र में
बिना ये जाने कि उनकी शह में
ही dissolve हो गये
उन्हें शिकायत है फिर भी, हम पहले से
न रहे अब
हम इसी गुमान में कि हम
तो evolve हो गये ।।